सिंधु घाटी सभ्यता

 सिंधु घाटी सभ्यता का इतिहास 

बीसवीं सदी की शुरुआत तक इतिहासकारों को लग रहा था की वैदिक सभ्यता ही भारत की सबसे पुरानी सभ्यता है। लेकिन बीसवीं सदी के तीसरे दशक में खोजे गए स्थलों से यह साबित हो गया कि वैदिक सभ्यता से भी पुरानी सभ्यता विद्यमान थी। क्योंकि इस सभ्यता का विकास सिंधु नदी नदी के किनारे हुआ था इसलिए इसका नाम सिंधु घाटी सभ्यता पड़ा था। इस सभ्यता को प्राक्प्रेतिहासिक अथवा कांस्य युग में रखा जा सकता है। ये सभ्यता 8000 साल पहले ही स्थापित हो चुकी थी। यहां हुई खुदाई के आधार पर ये इतिहासकारों का अनुमान है कि ये सभ्यता बहुत बार उजड़ और बस चुकी है।

सिंधु घाटी सभ्यता
सिंधु घाटी सभ्यता 

7वीं शताब्दी में जब लोग पाकिस्तान के पश्चमी पंजाब के प्रांत के मोंटगोमरी में स्थित लोग जब अपने मकानों को बनाने के लिए जब मिट्टी खुदाई में जब वहाँ से ईंटे मिली वो कोई साधारण ईंटे नहीं बल्कि इस सभ्यता के अवशेष है। उस समय लोगो ने इसे भगवान का चमत्कार माना और उन ईंटो का प्रयोग अपने मकानों को बनाने के लिए किया। 1856 में जब रेलवे लाइन बिछाने के लिए जब खुदाई हुई थी तो प्रथम अवशेष हड़प्पा नामक स्थान मिले थे इसलिए इस सभ्यता का नाम 'हड़प्पा सभ्यता' रखा गया। इसी दौरान1861 में अलेक्जेंडर कनिंघम के निर्देशन में भारतीय पुरातत्व विभाग की स्थापना की गई।

खोज

 सिंधु घाटी सभ्यता की खोज किसी एक व्यक्ति ने नही बल्कि कई पुरातत्वविदों के योगदान का भी परिणाम है। 1902 में लॉर्ड कर्जन ने जॉन मार्शल को भारतीय पुरातत्व का निर्देशक बनाया गया। फ्लीट ने इस पुरानी सभ्यता विषय में एक लेख लिखा था। 20वीं शताब्दी में,दयाराम साहनी ने हड़प्पा और राखालदास बनर्जी ने मोहनजोदड़ो की खुदाइ की पुरातात्विक सर्वेक्षण के डायरेक्टर जनरल जॉन मार्शल ने 1924 में इस नयी सभ्यता की खोज की घोषणा की। इसके बाद, कई अन्य पुरातत्वविदों ने इस सभ्यता की अनेक पहलुओं पर अध्ययन के लिए काम किया। यह बात ध्यान में रखना आवश्यक है कि सिंधु घाटी एक विशाल क्षेत्र में फैली हुई थी और इसकी खोज और अध्ययन कई देशों के पुरातत्वविदों ने किया है।


विस्तार

 पंजाब,सिंध,बलुचिस्तान,गुजरात,राजस्थान,हरियाणा, पश्चमी उत्तर प्रदेश तक इस सभ्यता का विस्तार था। यह सभ्यता सिंध और पंजाब में फली फूली थी।यह क्षेत्र आधुनिक पकिस्तान से तो बड़ा ही है बल्कि इसका क्षेत्रफल मिस्र और मेसोपोटामिया से भी बड़ा है।उत्तर में मांदा(जम्मू ),दक्षिण में दैमाबाद(अहमदाबाद,महाराष्ट्र),पश्चिम में मकरान समुद्र तट-सुत्कांगेडोर(ब्लूचिस्तान),पूर्व में आलमगीरपुर(मेरठ,उत्तर प्रदेश)तक फैला था। अफगानिस्तान के उत्तर में शोर्तुगोई और मुन्दिगाक में मिले अवशेष भी इस बात का साक्ष्य है कि यह स्थल भी इसी सभ्यता का ही हिस्सा थी | लगभग त्रिभुजाकार वाला यह भाग लगभग 12,99,600 वर्ग किमी में फैला है।
पूर्व से पश्चिम-1600 किमी
उत्तर से दक्षिण -1400 किमी
समुद्र तट की लम्बाई-1300किमी


सिंधु घाटी सभ्यता का काल निर्धारण

सिंधु घाटी सभ्यता के काल को निर्धारित करना बहुत कठिन काम है,परन्तु फिर भी विद्वानों ने इस विवादित विषय पर अपने विचार सामने रखे हैं। इस सभ्यता का काल निर्धारण मुख्य रूप से 'मेसोपोटामिया ' में 'उर' और 'किश' स्थलों पर पायी गयी हड़प्पाई मुद्राओं के आधार पर किया गया। इस में सबसे पहला प्रयास 'जॉन मार्शल' का रहा। उन्होंने ही इस सभ्यता का काल 3250 ई.पू.से 2750 ई.पू.निर्धारित किया था। लेकिन बाद में रेडियो कार्बन C-14 विधि की खोज के बाद इस सभ्यता का काल निर्धारण कुछ इस प्रकार किया गया है।

1.प्रारंभिक हड़प्पा संस्कृति 3200ई.पूर्व. से 2600ई.पूर्व.
2.परिपक्व हड़प्पा सभ्यता 2600ई.पूर्व.से 1900ई.पूर्व.
3.उत्तरवर्ती हड़प्पा संस्कृति 1900ई.पूर्व से 1300ई.पूर्व

लेकिन रेडियो कार्बन नयी विधि द्वारा इस सभ्यता की सर्वमान्य तिथि 2350 ई.पू. से 1750 ई.पू.मानी गयी है।


नगर निर्माण योजना

सिंधु घाटी सभ्यता के नगर को दो भागों में बाँटा गया था - ऊपरी और निम्न भाग।
इस सभ्यता की महत्वपूर्ण विशेषता विकसित नगर निर्माण योजना थी। यहां के नगर और सड़के विधिवत तरीके से बनाये गए थे। यहाँ के मकान पक्की ईंटो के बने होते थे। हड़प्पा शहरों की सबसे अनोखी विशेषताओं में से एक नियोजित जल निकास प्रणाली थी। सड़कों तथा गलियों को लगभग एक ग्रिड पद्धति(जालनुमा) में बनाया गया था और ये एक दूसरे को समकोण पर काटती थी। ऐसा प्रतीत होता है कि नालियों के साथ गलियों को बनाया गया था और फिर उनके बगल में आवासों का निर्माण किया गया था।

नालियाँ ईंटों या पत्थरों से ढकी होती थी| इनके निर्माण में मुख्यत: ईंटो और मोर्टार का प्रयोग किया जाता था, पर कभी-कभी चुने और जिप्सम का प्रयोग भी मिलता है। लगभग हर घर में प्रांगण और स्नानागार होता था। कालीबंगा के प्रत्येक घर में अपने-अपने कुएं होते थे। स्नानागार मकान के उस भाग में बनाये जाते थे जो सड़क अथवा गली के नजदीक होते थे। घरों का पानी बहकर सड़को की नालियों के अंदर जाता था। सड़को और नलियों के अवशेष बनावली में भी मिले है। घरों के दरवाज़े और खिड़कियां सड़क की ओर न खुलकर पीछे की ओर खुलते थे (लोथल को छोड़कर)

मोहनजोदड़ो में मिला स्नानागार
                         
मोहनजोदड़ो में एक विशेष स्नानागार मिला है जो 11.88 मीटर लंबा, 7.01 मीटर चौड़ा और 2.43 मीटर गहरा था। (39फीट×23फीट×8फीट) इन स्नानागार का प्रयोग आनुष्ठानिक स्नान के लिए होता था। स्नानागार को ग्रेट बाथ भी कहा जाता है।


धार्मिक जीवन

सिंधु घाटी सभ्यता में मातृदेवी पूजा को विशेष स्थान प्राप्त था। मातृदेवी की पूजा के साथ देवता पूजा में भी बलि का विधान था। हड़प्पा से पकी मिट्टी की स्त्री मूर्तिकाएं भारी मात्रा में मिली है जिसमें एक मूर्ति में स्त्री के गर्भ से पौधा निकलता हुआ दिखाया गया है विद्वानों का मानना है कि ये मूर्ति धरती को उर्वरता की देवी माना जाता था। परन्तु यहां पर मंदिर के प्रमाण नहीं मिले है।

मूर्तियों और ताबीजों के अलावा मुहरों में अंकित चित्रों से पशु पूजा,लिंग,योनि,वृक्ष पूजा का अनुमान लगाया गया है। पशु पूजा में एक सींग वाला जानवर(यूनिकॉर्न),जो गैंडा हो सकता है। उसके बाद महत्व का है कूबड़वाला सांड फाख्ता एक पवित्र पक्षी माना जाता था। धार्मिक रूढ़ियों और कर्मकांडो को महत्व दिया जाता था। ये लोग भूत-प्रेत,अंधविश्वास,जादू-टोना पर भी विश्वास करते थे।

मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक मुहर में पशुपति शिव की मूर्ति अंकित है,जिसमें बाई ओर एक गैंडा और भैंसा तथा दाई ओर हाथी और बाघ है। आसान के नीचे दो हिरन भी बैठे हुए हैं। इससे शिव जी की पूजा के प्रचलन के विषय में अनुमान लगाया जा सकता है। 'स्वास्तिक चिह्न' भी हड़प्पा सभ्यता की देन है।

यहां पर मृतकों के संस्कार की तीन विधियां प्रचलित रही है। पूर्ण दफन,आंशिक दफन,दाह संस्कार। पूर्ण दफन की विधि इस सभ्यता में अधिक प्रचलित थी।

सामाजिक जीवन

समाज व्यवसाय के आधार पर 4 भागों में बांटा गया— पुरोहित(विद्वान),योद्धा,व्यापारी, शिल्पकार(श्रमिक)।
समाज सुखी तथा सुविधापूर्ण था व सामाजिक व्यवस्था की मुख्य इकाई परिवार थी। खुदाई में मिली मूर्तियों से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि समाज मातृसत्तात्मक था।

लोग शाकाहारी मांसाहारी दोनों थे। गेहूं,जौ,चावल,तिल और दाल इत्यादि इनके प्रमुख खाद्यान्न थे। स्त्री और पुरुषों में महंगी धातुओं से बने ज़ेवर के प्रति आकर्षण देखने को मिलता है। सोना,चांदी,हाथी–दांत, तांबे और सीप से बने ज़ेवर, जैसे-कण्ठहार,कर्णफूल,हँसुली, भुजबंद और कड़ा का चलन था जिन्हें स्त्री और पुरुष समान रूप से पहनते थे।

सिंधु निवासी मनोरंजन के शौकीन थे। जुआ खेलना,शिकार करना,नाचना,गाना–बजाना आदि लोगों के मनोरंजन के साधन थे। पासा इस समय का प्रमुख खेल था। मछली पकड़ना,शिकार करना हड़प्पाई लोगों का दैनिक क्रियाकलाप था। शतरंज जैसा खेल यहां प्रचलित था। मिट्टी के बर्तनों के अलावा यहां तांबे के कांस्य के बर्तन का भी प्रयोग किया जाता था। इन बर्तनों पर सामान्यतः लाल रंग का प्रयोग किया जाता था।हड़प्पा सभ्यता में घोड़े के अस्तित्व की जानकारी नहीं है। सुरकोटडा में घोड़े की हड्डी के साक्ष्य मिले है,जोकि अपवादस्वरूप है।

शिल्पकला और उद्योग धंधे

कृषि और पशुपालन के अलावा यहां के लोग शिल्प और उद्योग में भी निपुण थे। ये लोग कांसे से वस्तु बनाने में भी निपुण थे कांसे के अधिक प्रयोग से इस सभ्यता को कांस्य युग में रखा गया है। कुम्हार के चाक का खूब चलन था चाक पर मिट्टी के बर्तन,खिलौने बनाना आदि अन्य प्रमुख उद्योग और धंधे थे। मृतभाण्ड (बर्तन) ज्यादातर सादे थे, हालांकि कुछ लाल और काले रंग से रंगे जाते थे। ये लोग चमकदार बर्तनों का निर्माण भी करते थे।

इसके साथ–साथ नाव बनाना,मनका बनाना,औजार बनाना और परिवहन उद्योग से भी यह परिचित थे। टेराकोटा मूर्तियां निर्माण इस सभ्यता की विशेष शिल्प विशेषता थी।

सिंधु सभ्यता का अंत

 इस सभ्यता के अंत के विषय में सब विद्वानों के अलग अलग मत है ये मत सिर्फ अनुमान के आधार पर है।

• यह सभ्यता व्यापार प्रणाली पर निर्भर थी। अन्य सभ्यताओं के साथ व्यापारिक नेटवर्क की गिरावट के कारण इस सभ्यता का पतन हुआ होगा।
• विद्वानों और वैज्ञानिकों ने हड़प्पा सभ्यता के अंत का मुख्य कारण आर्यो के आक्रमण को माना है
• संभावना है नदियों द्वारा अपना रास्ता बदलने से लंबे समय तक पानी और भोजन की कमी के कारण इस सभ्यता का पतन हुआ होगा ।
• कुछ विद्वान का मानना है कि इस सभ्यता का अंत संक्रामक रोगों के फैलने से हुआ होगा।
• इस सभ्यता में जलवायु परिवर्तन के कारण सिंधु घाटी सभ्यता के मौसम में भारी बदलाव के कारण यहां गर्मी में बारिश होना कम हो गया था जिससे यहां खेती करना मुश्किल हो गया था।
• सिंधु घाटी के अनेक शहरों हड़प्पा,मोहनजोदड़ो,लोथल जैसे शहरों में मिली परतें मिली है जिससे विद्वानों का मानना है कि यहां पर संभावित ही भीष्ण बाढ़ का आगमन हुआ होगा।
• इस सभ्यता की विशेषता सामाजिक संरचना थी लेकिन समय के साथ-साथ यह कम प्रभावी होती गई। जिससे बुनियादी ढाँचे में बिखराव होना शुरू हुआ था।
• लेकिन साक्ष्य ये साबित करते है कि इस सभ्यता का पतन अचानक से नहीं हुआ था।

हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख स्थल,खोजकर्ता,वर्ष,नदी,स्थान,प्राप्त साक्ष्य




निष्कर्ष :

दोस्तों अब आप सिंधु घाटी सभ्यता के बारे में जान चुके हो परन्तु ये बात ध्यान देने योग्य है की उस समय में यह पर विकसित नगर निर्माण योजना  बहुत अद्धभुत थी। उस समय का समाज सुखी और समृद्ध था। छोटे बड़े घर पास पास बने हुए है जिससे ये अनुमान लगा जा सकता यह व्यापारी वर्ग और मध्यम वर्ग के बीच किसी तरह का भेदभाव नहीं था ।

FAQs  

सिंधु घाटी सभ्यता के लोग किसकी पूजा करते थे ?
ये लोग भगवान शिव,मातृदेवी,धरती,पीपल के पेड़ और अग्नि देवता की पूजा करते थे।

सिंधु घाटी सभ्यता के जनक कौन थे ? 
रायबहादुर दयाराम साहनी जी ने सिंधु घाटी सभ्यता की थी।

सिंधु घाटी सभ्यता की विशेषता क्या थी ? 
ईंटो का प्रयोग भवनों पर होना उस समय की महत्वपूर्ण विशेषता थी।  

 हड़प्पा सभ्यता कितने साल पुरानी है ? 
यह सभ्यता लगभग 8000 साल पुराणी है।

हड़प्पा सभ्यता की लिपि क्या थी?
 सिंधु लिपि या हड़प्पा लिपि 

हड़प्पा सभ्यता का बंदरगाह कौन था ?
लोथल इस सभ्यता का बंदरगाह था ।

प्रोटो शिवा कौन थे ? 
पशुपति नाथ सिंधु घाटी सभ्यता द्वारा पूजे जाने वाले देवता थे । 

भारत की सबसे पुरानी सभ्यता कौन सी है ?
सिंधु घाटी सभ्यता को भारत की सबसे पुरानी  सभ्यता माना जाता है। 

नर्तकी की मूर्ति कहाँ से प्राप्त हुई है ?
ये मूर्ति इस सभ्यता के स्थल मोहनजोदड़ो से मिली है।

लोथल का वतमान नाम क्या है ? 
लोथल को आज के समय में गुजरात के नाम से जाना जाता है। 

उम्मीद है हमारे ब्लॉग में आपको सिंधु घाटी सभ्यता के बारे में आपको पूरी जानकारी मिली होगी। भारत के इतिहास से जुडी और जानकारी और अन्य ब्लॉग पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट Mysterious Indian History जुड़े रहे।


एक टिप्पणी भेजें

2 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.