मोहनजोदड़ो सभ्यता
मोहनजोदड़ो सिंधु घाटी सभ्यता का अहम शहर था। ये सभ्यता 8000 साल पहले ही बस चुकी थी। मोहनजोदड़ो का मतलब "मुर्दो का टीला" है क्योंकि यहां खुदाई के दौरान अनेक इन्सानी हड्डियां और ही कंकाल मिले थे। इसलिए इसका नाम मोहनजोदड़ो पड़ा| इसका सही उच्चारण 'मुअन जो दड़ो' है सिंधी भाषा में मुअन का अर्थ मरा हुआ और दारा का अर्थ टीला होता है। असल में इसे सिंधु सभ्यता का उत्कृष्ठ और नियोजित शहर माना जाता था। इस शहर को देखकर ऐसा बिल्कुल भी कहा जा सकता ये जोकि उस समय का इतना विकसित शहर था। जहां लोग आज से हजारों सालों पहले ही आज के समान खुशहाल और सभ्य ज़िंदगी जी रहे थे। प्राचीन इतिहास में आकर्षित शहर मोहनजोदड़ो रहा है।विद्वानों के अनुसार शहर यह सात बार उजड़ और बस चुका है।
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मोहनजोदड़ो |
मोहनजोदड़ो इतिहास
मोहनजोदड़ो पाकिस्तान के लरकाना जिले में है जो लरकाना से 20 किलोमीटर और सक्खर से 80 किमी दूर स्थित है। यह शहर सिंधु नदी के दाईं तरफ स्थित है इसलिए इसे 'सिंध का बाग़' भी कहा जाता है। हड़प्पा की खुदाई के बाद, हड़प्पा से 688किमी की दूरी पर मोहनजोदड़ो के 125 से 200 हेक्टेयर में फैले होने का अनुमान है।मोहनजोदड़ो शहर 2600ई.पू.से 1700ई.पू.तक अस्तित्व में था। इसका मतलब मोहनजोदड़ो लगभग 4000 साल पुराना शहर है|
1856 में जब रेलवे ट्रैक बनाने के लिए जब खुदाई चल रही थी तब वहाँ पर अंग्रेज़ इंजीनियर को कठोर पत्थर की आवश्यकता थी जिसके लिए उन्होंने आस पास के स्थान से खुदाई में कुछ पुरानी ईंटे मिली जो आज की ईंटो की भांति दिखती थी। फिर पास के गांव में पूछताछ करने पर पता चला कि उस गांव के प्रत्येक घर में इन्ही ईंटो से घर बने है तब वह इंजीनियर समझ गया कि ये कोई मामूली ईंटे नहीं है यहाँ पर अवश्य ही कोई बहुत बड़ी रहस्य्मयी सभ्यता रही होगी।
भारतीय पुरातत्व विभाग के पुरातत्विद राखाल दास बनर्जी के नेतृत्व में साल खोज 1920 शुरू हुई थी।और 1922 में मोहनजोदड़ो को खोजा गया। हड़प्पा की खोज के बाद उन्होंने सिंधु नदी के किनारे और खुदाई में मोहनजोदड़ो का पता चला था। पहले यहाँ पर बौद्ध धर्म के स्थल होने का आभास हुआ था। उसके बाद उन्होंने सिंधु नदी के किनारे इस स्थल की खुदाई शुरू की। उसके बाद काशीनाथ(1924)में,जॉन मार्शल(1925) मोहनजोदड़ो की खुदाई को जारी रखा, इसके बाद भी भारत सरकार के कुछ लोगो ने 1965 तक काम को जारी रखा था। लेकिन कुछ कारणों की वजह से इस खुदाई को रोकना पड़ा। लगभग 100 सालों में यहाँ पर केवल एक-तिहाई भाग की ही खुदाई हो पाई है। मोहनजोदड़ो को यूनेस्को की विश्व धरोहर को 1980 में अंकित किया गया था।
नगर नियोजन
इस सभ्यता में नगर नियोजन की व्यवस्था देखकर लगता है कि यहां के लोग नगर निर्माण में बहुत कुशल थे। यहां कि नगर निर्माण बहुत ही व्यवस्थित और वैज्ञानिक तरीके से किए गए थे। इस शहर की सुरक्षा के लिए इसके चारों और मोटी दीवारें बनायी गई थी। यहां कि सड़के खुली और नालियां की भी अच्छी व्यवस्था की गयी थी। घरों से गंदा पानी निकलकर इन्हीं मुख्य नाली में मिलता था। नाली की बदबू से बचने के लिए नाली पर ईंटों से ढकी गई थी। यहां पर कूड़ा फेंकने के लिए भी अलग से ईंटों की दीवारें बनायी गई थी। यह अनुमान है कि यह लोग सफाई का विशेष ध्यान रखते थे। यहां पर प्रत्येक घर पर कुएं- शौचालय भी देखे गए है ।
यहां पर सड़को के दोनों ओर घर है। और घरों के दरवाजे सड़कों की ओर न खुलकर गलियों की ओर खुलती थी। यहाँ पर तीन मंजिला घर भी पाए गए है। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा में खुले स्थान भी मिले है। ऐसा माना जाता है कि यहां पर किसी बाजार के होने की भी संभावना है।
स्नानागार
मोहनजोदड़ो का स्नानागार इस सभ्यता के स्थापत्य का सबसे उत्तम उदाहरण है। इसे 'महान स्नानागार' भी कहते है। ये दुनिया का सबसे पुराना स्नानागार है। इस स्नानागार में प्रवेश करने के लिए दक्षिण और उत्तर दिशा से सीढ़ियां बनायी गई है। स्नानकुंड 11.88मी. लंबा,7.01चौड़ा और 2.43 मी. गहरा है।![]() |
| मोहनजोदड़ो में बना स्नानागार |
यह स्नानकुंड को पक्की ईंटों द्वारा बनाया गया है यहां पर 3 कमरे भी बनाये गए है जहां पर कुएं बनाए गए है इससे कुंड में साफ पानी डालने के लिए जोड़ा गया था। गंदे पानी को बाहर निकालने के लिए नालियां बनाई गई थी। इस स्नानागार का उपयोग अनुष्ठानिक दिवसों पर स्नान करने के लिए किया जाता था। यहां पर 8 स्नानघर भी बनाए गए है। स्नानकुंड में बाहर से गंदा पानी न आये इसलिए इसके दीवारों और फर्श पर बिटूमन-जिप्सम के घोल से की गई थी। चिनाई इतनी उत्तम तरीके से की गई थी कि फर्श पर पानी रिसता नहीं था।
कृषि और व्यापार
खुदाई में प्राप्त अवशेषों से पता चलता है कि यहां पर खेती और पशुपालन भी होता था। यहां पर रबी की फसल को बोया जाता था । यहां पर गेहूं,सरसों,कपास,चने और जौ के साक्ष्य मिले है। यहां पर धान के भी साक्ष्य मिले है अनुमान है कि जौ और गेहूं यहां की मुख्य फसल थी खोज के दौरान खेती से जुड़े उपकरण भी मिले है ये औजार मुख्यत: पत्थर और राजस्थान से लाए गए तांबे से बनाए गए थे।
यहां के लोग व्यापार करने में विश्वास रखते थे इस सभ्यता का व्यापार अन्य सभ्यताओं (मेसोपोटामिया,मिस्र) से भी था। कपास के टुकड़े मिलने से ये अनुमान लगाया जा सकता है कि यहां पर सूती(कॉटन)कपड़ों का अधिक चलन था। सूती कपड़ों को पक्के रंगों में भी रंगा जाता था। यहां पर कपास का प्रयोग अन्य और कामों में मोटे तौर पर किया जाता था फिर इनसे बनाए गए कपड़ों को विदेशों में बेचने के लिए भेजा जाता था। यहां पर लोग सोना, चांदी, तांबे, मोती के सुंदर आभूषण भी बनाते थे जो भारी मात्रा में यहां से प्राप्त हुए है।
नर्तकी की मूर्ति
मोहनजोदड़ो से एक घर नर्तकी की मूर्ति मिली है। यह कांसे से बनी हुई है। माना जाता है इसे 2500 ई.पू. में बनायी गई थी। यह मूर्ति नर्तकी (देवदासी) की लग रही है हालांकि ये मूर्ति नृत्य मुद्रा में नहीं है। इसका श्रृंगार देखकर लग रहा है कि इसका व्यवसाय अवश्य ही नृत्य का हो सकता है। इस मूर्ति के शरीर पर वस्त्र नहीं है इसे डांसिंग गर्ल मूर्ति भी कहते है। इसका आकार 10.5×5× 2.5 cm है। मूर्ति को पिघली हुई मोम तकनीक द्वारा बनाया गया है।![]() |
| मोहनजोदड़ो से मिली काँसे की मूर्ति |
कला
इस शहर को अपनी अनोखी कला के लिए आज भी जाना जाता है। यह पर प्राप्त धातु कला, नगर कला, वास्तु कला इस सभ्यता को कलासिद्ध साबित करता है। पत्थर की मूर्ति,मिट्टी के बर्तन और उन पर पशु-पक्षी के चित्र,पत्थर की मूर्तियां,मुहरों पर अंकित अनेक प्रकार की आकृतियां आदि इस सभ्यता की कला से रूबरू करवाती है। ये लोग लोहे,मिट्टी,तांबे लकड़ी और पीतल के आभूषण और हथियार आदि भी बनाते थे क्योंकि यहाँ पर पुरुष और स्त्री दोनों को आभूषण पहनना पसंद होता था। यहाँ पर सोने की उत्तम कलाकृति भी की जाती थी। यहाँ पर मिट्टी के थर पर खास तरह के सांचो से बनाये गए सिक्के भी मिले है।
संग्रहालय
यहां पर संग्रहालय भी है। यहां खोज में बहुत सी वस्तुएं मिली है। कांसे और मिट्टी के बर्तन, मिट्टी के खिलौने, सोने और पत्थर से बने आभूषण,चाक पर मिट्टी के बड़े मटके, तांबे से बना शीशा, पत्थर के औजार भी मिले है। यहां पर बहुत सी सूई भी मिली है जो तांबे और कांसे की बनी हुई है। 1925-26 में किंग प्रिस्ट की पत्थर की मूर्ति भी मिली है। एक कमरे में 14 लाशों के ढांचे की फोटो और हड्डियों के अंश, शतरंज की मोहरे, मिट्टी के दिये आदि इस संग्रहालय में सुरक्षित रखे गए है।
मोहनजोदड़ो नगर का अंत
मोहनजोदड़ो के पतन के विषय में वैज्ञानिकों के अलग अलग मत है।
- आर्यो का आक्रमण इस महानगर से लोग डर कर भाग गए और यह नगर खंडहर में बदल गया।
- कहा जाता है इस शहर में कोई भयानक माहवारी फैलने से इस सभ्यता का अंत होना शुरू हुआ था।
- मार्शल के अनुसार बाढ़ ही इस सभ्यता के अंत का मुख्य कारण थी उन्होंने ये विचार 7 बार आयी मोहनजोदड़ो में आई बाढ़ के आधार पर दिया है।
- जंगलों की अत्यधिक कटाई के कारण जिस कारण जलवायु परिवर्तन में परिवर्तन के का कारण इस सभ्यता का अंत हुआ था।
- सिंधु नदी के मार्ग बदलने से वहाँ पर पानी की कमी के कारण सिंचाई और जल आपूर्ति के पूर्ण न होने के कारण खेती पर गिरावट होने के कारण इस शहर अंत हुआ होगा |
- अन्य सभ्यताओं के साथ जो व्यापार नेटवर्क था,और व्यापारिक संबंधों में गिरावट के कारण आर्थिक स्थिति प्रव्हावित हुई होगी |
- सामाजिक और सामाजिक कारणों जैसे आंतरिक संघर्ष,शासन में बदलाव,असमानता या अन्य सामाजिक मुद्दों,अशांति के कारण मोहनजोदड़ो का अंत हुआ होगा |
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सिंधु सभ्यता सभ्यता एक बहुत बड़े क्षेत्र में फैली थी। ऐसी संभावना है कि इस बड़ी सभ्यता का पतन किसी एक कारण से तो नहीं हुआ था। हर स्थल के पतन के पीछे अलग कारण हो सकते है जैसे किसी का अंत बाढ़ से हुआ किसी का अग्निकांड से किसी का अंत जलवायु परिवर्तन से तो किसी का माहवारी से। इन स्थलों का पतन तीव्र न होकर धीमी से होना शुरू हुआ था।
मोहनजोदड़ो पर बनी फिल्म
मोहनजोदड़ो पर एक फिलम बनी है फिल्म लेखन और निर्देशन आशुतोष गोवारिकर ने है | इस फिल्म में ऋतिक रोशन और पूजा पूजा हेगड़े मुख्य भूमिका में नज़र आ रहे है | आशुतोष को ऐतिहासिक फिल्म निर्माण को बनाने के लिए जाना जाता है |फिल्म से जुड़े कलाकार और अन्य लोग
अदाकार -ऋतिक रोशन,पूजा हेगड़े
निर्माता -आशुतोष गोवारिकर प्रोडक्शन
निर्देशन -आशुतोष गोवारिकर
लेखक -आशुतोष गोवारिकर
संगीत - A.R रहमान
फिल्म रिलीज़ डेट-12 August,2016
निष्कर्ष :
मोहनजोदड़ो सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे पहला बड़ा ओर अहम शहर था। इस शहर को चारों ओर से मजबूत दीवारों से सुरक्षित रखा गया था और आज भी ये दीवारें उतनी ही मजबूत है। यहां पर पाया गया स्नानागार लोगों के धार्मिक जीवन का अभिन्न अंग था। यहाँ का नगर नियोजन इतना वैज्ञानिक ढंग से किया गया था कि ऐसा लगना मुश्किल है कि ये उस समय की सभ्यता थीFAQ's
मोहनजोदड़ो कहाँ बसा हुआ है?मोहनजोदड़ो वर्तमान पाकिस्तान के सिंध प्रांत के लरकाना जिले में बस हुआ एक शहर है।
मोहनजोदड़ो का वर्तमान नाम क्या है?
इसका वर्तमान नाम अभी भी मोहनजोदड़ो ही है जोकि पाकिस्तान में स्थित है।
मोहनजोदड़ो में कितने कुएं थे?
खुदाई के दौरान यहां पर 700 कुएं प्राप्त हुए थे इसलिए इसे कुओं का शहर भी कहते है।
मोहनजोदड़ो की आबादी कितनी थी?
एक अनुमान के अनुसार मोहनजोदड़ो की 40,000 तक थी।
मोहनजोदड़ो का नाम कैसे पड़ा?
यहाँ की खुदाई के दौरान अनेक मानव हड्डियां मिली थी इसलिए इसका नाम मोहनजोदड़ो रखा गया था यानि मृतकों का शहर।
मोहनजोदड़ो की खोज कब हुई?
मोहनजोदड़ो की खोज 1921ई. में भारतीय सर्वेक्षण के महानिर्देशक जॉन मार्शल निर्देश पर खुदाई शुरू की गई और 1922 में राखाल दास बनर्जी ने मोहनजोदड़ो को खोज था।
मोहनजोदड़ो के देवता कौन थे?
मोहनजोदड़ो से खुदाई में मिले मुहरों पर शिव अंकित मिले है इसलिए अनुमान है कि ये लोग शिव की उपासना करते होंगे।
मोहनजोदड़ो की खुदाई अब बंद क्यों कर दी गई है?
इस सभ्यता के अस्तित्व पर पिछले लंबे समय से खतरा बना हुआ है। पुरातत्वशास्त्रियों ने ये फैसला लिया है कि खुदाई को बंद कर अब इसे बचाने के लिए इसे दफना देना ही बेहतर है जब तक इसके संरक्षण का कोई और बेहतर मार्ग नहीं निकल जाता।
आशा करते है आपको मोहनजोदड़ो के बारे में पूरी जानकारी मिली होगी। भारतीय इतिहास से जुड़ी जानकारी और अन्य ब्लॉग पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट Mysterious Indian History से जुड़े रहे।
मोहनजोदड़ो से खुदाई में मिले मुहरों पर शिव अंकित मिले है इसलिए अनुमान है कि ये लोग शिव की उपासना करते होंगे।
मोहनजोदड़ो की खुदाई अब बंद क्यों कर दी गई है?
इस सभ्यता के अस्तित्व पर पिछले लंबे समय से खतरा बना हुआ है। पुरातत्वशास्त्रियों ने ये फैसला लिया है कि खुदाई को बंद कर अब इसे बचाने के लिए इसे दफना देना ही बेहतर है जब तक इसके संरक्षण का कोई और बेहतर मार्ग नहीं निकल जाता।
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